बाराबंकी: हिन्दी भाषा के जाने माने विद्वान डॉ भगवान वत्स जी अब हमारे बीच नहीं रहे। डॉ वत्स ने शनिवार को दिन 01:15 बजे अपनी बड़ी बेटी डॉ सुविद्या वत्स के बाराबंकी नगर स्थित आवास पर अन्तिम सांस ली। डॉ वत्स कई माह से बीमार चल रहे थे। डॉ वत्स की दोनों बेटियों सुविद्या वत्स और दिव्या वत्स के मकान सेक्टर 2 आवास विकास में ही हैं। अन्तिम दर्शन के लिए सेक्टर 2,आवास विकास, (दूरसंचार एक्सचेंज के निकट) बाराबंकी में ही पार्थिव शरीर रखा गया था। जनपद के लोकप्रिय सांसद उपेंद्र सिंह रावत एवं पूर्व मंत्री राकेश वर्मा पहुंच कर परिवार को सांत्वना दी। डॉक्टर वत्स के पार्थिव शरीर को उनके गांव ललकपुर मंझार ले जाया गया है कल 10:00 बजे अंतिम संस्कार किया जाएगा।डॉक्टर भगवान वत्स का जन्म जनपद के ललकपुर-मंझार नामक गांव में 15 दिसंबर सन् 1937 को हुआ था । डॉ वत्स हिंदी, संस्कृत, तमिल, तेलगु, मलयालम, अंग्रेजी, उर्दू, पालि, प्राकृत, अपभ्रंष, बंगला, असमी, मराठी, आदि कई भाषाओं के विद्वान् थे । डॉ0 भगवान वत्स शिक्षा जगत के कोने-कोने में प्रसिद्ध व्यक्ति थे | वे सन् 1975 के आपात काल में जेल में भी रहे। समाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ते भी रहे। हरिवंशराय बच्चन से लेकर श्री लाल शुक्ल जैसे अनेक महान साहित्यकारों का सानिध्य प्राप्त करने वाले, भाषा वैज्ञानिक डॉ० भगवान वत्स ने अपने ज्ञान प्रसार के लक्ष्य को कभी नहीं छोड़ा | उन्होंने अपने ज्ञान चक्षुवों और कर कमलों से जनपद ही नहीं बल्कि देश-प्रदेश की कई दर्जन सामाजिक और शैक्षिक संस्थाओं के सृजन में महती भूमिका भी निभाई | डॉ. भगवान वत्स की कलम से निकली हुई अनेक संस्थाएं आज पल्लवित-पुष्पित हो रही हैं | भगवान सदैव देता ही देता है, कभी कुछ लेने का भाव नहीं रखता | अपने नाम की मर्यादा रखने वाले, डॉ. वत्स ने जिन संस्थाओं और पत्र-पत्रिकाओं के सृजन और विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, उनमें से कुछ प्रमुख हैं – राम सेवक यादव परास्नातक महाविद्यालय चंदौली, यादव शक्ति (मासिक पत्रिका) यादव ट्रष्ट आफ इंडिया, लखनऊ, अखिल भारतीय प्रबुद्ध यादव संगम, उत्तर प्रदेशीय यादव महासभा, यादव विकास मंच, विश्व बन्धु सेवा संस्थान, राष्ट्र भाषा परिषद्, पारिजात-पत्र, शब्द-मासिक पत्र और शब्द प्रेस पारिजात औद्योगिक प्रतिष्ठान, आदि आदि । इन सबका संचालन डॉ. वत्स के शुभ चिंतकों द्वारा हो रहा है |
महान शिक्षा विद् और लोकतंत्र सेनानी डॉ भगवान वत्स नहीं रहे ।
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