चिनहट थाने की पुलिस के हाथ खाली नकली शराब बनाकर बेचने वाले गिरोह के मुख्य आरोपी पुलिस से कोसों दूर..
चिनहट पुलिस के हाथ खाली। चिनहट थाना जल सेतु चौकी के अंतर्गत ग्राम देवरिया में नकली शराब बनाने वाले गिरोह के दो सदस्यों को गिरफ्तार करने के बाद गिरोह के मुख्य अभियुक्त एवं उनके साथियों को पकड़ने में पुलिस अभी भी नाकाम है।
नकली शराब बनाकर एवं उसको बेचने वाले गिरोह के दो मामूली आरोपियों को पकड़ने के मामले में चिनहट पुलिस ने इस कारनामे से पुलिस विभाग में बहुत वाहवाही लूटी, लेकिन मुख्य आरोपी एवं अन्य सदस्यों को गिरफ्तार करने में अभी भी पुलिस के हाथ खाली हैं, पुलिस के मुताबिक पकड़े गए दोनों अभियुक्त सौरभ मिश्रा एवं अनुज जयसवाल से पूछताछ में सभी अभियुक्तों के बारे में गहनता से सारी जानकारी इकट्ठा की गई और सर गर्मी के साथ सभी अभियुक्तों की तलाश की जा रही है लेकिन पुलिस अभी भी इन अभियुक्तों को पकड़ने में नाकाम साबित हो रही है पुलिस को अपने विश्वसनीय मुखबिर तंत्र से कोई जानकारी नहीं मिल रही है। अमूमन ऐसे मामले होने के बाद पुलिस की मुखबिरी तंत्र फेल हो जाती है।
(शराब के लाइसेंसी दुकानदारों की गर्दन पर लटक सकती थी तलवार) पुलिस के अनुसार लगभग 75 लाख की नकली शराब बरामद हुई जिस पर असली मारका एवं असली कंपनी का स्टीकर लगाकर लखनऊ एवं आसपास के लाइसेंसी दुकानदारों को शराब बेची जा रही थी। दोनों पकड़े गए शराब तस्करों एवं पुलिस के कहे अनुसार टीम के अन्य सदस्य लाइसेंसी शराब के दुकानदारों को नकली शराब सप्लाई कर रहे थे। और लाइसेंसी शराब का दुकानदार इन नकली शराब को बेच कर दो से 3 गुना मुनाफा लेकर मोटी कमाई कर सरकार के राजस्व को चूना लगा रहे थे।
(पुलिस की कार्यशैली पर बड़ा सवालिया निशान)
लॉक डाउन के दौरान प्रदेश में सख्ती से बंदी लागू की गई थी। जिससे शहर के सभी मुख्य मार्ग पर एवं चौराहों पर पुलिस ने जबरदस्त तालाबंदी कर रखी थी। पुलिस भी सभी चौराहों पर मुस्तैद दिखी पुलिस सभी क्षेत्र में पेट्रोलिंग व्यवस्था दुरुस्त होने का भी राग अलाप रही थी। लेकिन इन व्यवस्थाओं एवं सख्ती के बावजूद फरवरी माह से सितंबर माह तक इसमें लगभग 4 महीने प्रदेश मे संपूर्ण लॉकडाउन रहा उसके बाद भी किसी को फैक्ट्री की भनक तक नहीं लगी और यह गिरोह शराब बेचकर मोटी कमाई करते रहे। पुलिस ने शराब बनाने में प्रयोग किए जाने वाली सामग्री तो बरामद की लेकिन यह जानना या बताना उचित नहीं समझा कि यह लोग सामग्री लाते कहां है से थे और किन लोगों को नकली शराब बेचते थे।
(लोगों की जान से खिलवाड़)
नकली शराब पीने से लोगों की जान भी जा सकती थी क्योंकि यह शराब बनाने वाले कोई डिग्री धारक नहीं थे। यह लोग अल्कोहल यूरिया एवं तमाम रसायनिक पदार्थों को मिलाकर नकली शराब बनाते थे, इनमें से किसी की मात्रा ज्यादा होने पर भी लोगों की जान पर बन सकती थी इससे बड़ी मात्रा में लोगों की जान जा सकती है।
लखनऊ एवं आसपास देहात क्षेत्र में शराब पीकर हुई मौतों के तार भी जुड़े हो सकते हैं बीते वर्ष बाराबंकी में सरकारी ठेकों से खरीदकर जहरीली शराब पीने से 21 मौतें हुई थी अधिकारियों की पुष्टि के आधार पर लगभग 80 लोगों की जान पर बन आई थी। आबकारी निरीक्षक राम तीरथ मौर्य भी सवालों के घेरे में थे और निलंबन की तलवार भी उन पर लटक गई थी। कहीं नकली शराब बेचने वाले गिरोह का तार इन मौतों से तो नहीं जुड़े हैं!
यह सभी पहलू एक जांच का विषय है। लेकिन अब आगे पुलिस की कार्यशैली एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करती है कि आखिर नकली शराब बनाने का सिलसिला कब तक जारी रहेगा। जबकि लखनऊ पुलिस एकदम मुस्तैद है। और लखनऊ में यह भी देखना है कि कमिश्नरी सिस्टम लागू होने के बाद लखनऊ पुलिस अपराध एवं अपराधियों पर लगाम लगाने में कितना कठोर कदम उठा सकती है।