
बंकी, बाराबंकी। जनपद में प्राइमरी विद्यालयों की हालत बद से बदतर होने के कारण लोगों की हिम्मत नहीं पड़ती कि वो अपने बच्चों को इन विद्यालयों में कैसे भेजे। प्राइमरी विद्यालय जलालपुर में शिक्षा कैसे पटरी पर आए जब वहां की तमाम जरूरी व्यवस्थाएं ही ध्वस्त है। आसपास के लोगों व पढ़ने वाले छा़त्र-छात्राओं की मानें तो न तो अध्यापक समय पर नहीं आते है और नहीं कोई विद्यालय गए बच्चो की देखरेख को ही कोई विद्यालय में सुलभ होता है। जिसके चलते पढ़ने के लिए विद्यालय गए बच्चे बाहर टहलते कभी भी देखें जा सकते हैं।
क्षेत्रीय लोगों की मानें तो कहीं खुदा न खास्ता इन मासूम बच्चो के साथ कोई हादसा हो जाए तो कोई देखने सुनने वाला विद्यालय में मिलेगा ही नहीं। इसीलिए लोग सरकारी स्कूल में अपने बच्चे को पढ़ने नहीं भेजते न ही इन सरकारी विद्यालय में एडमिशन दिलाते है अपने बच्चो को। विद्यालय में कक्षा प्रथम से कक्षा पांच तक के छात्रों को मिलता है एडमिशन लेकिन किसी विद्यालय में दो तो किसी में तीन अध्यापक ही रहते है एक शिक्षामित्र को जोड़कर। जबकि बच्चो के देखरेख की कोई व्यवस्था न होने के कारण अभिवावकों को लगातार चिंता बनी रहती हैं। पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों का दर्द सुना जाए तो उनका कहना है कि जब सरकार अध्यापक को इतना अधिक वेतन दे रही हैं बच्चो को भोजन दे रही है। तो फिर आखिर इन विद्यालयों में दूसरे मंहगे विद्यालयों जैसी सुविधाओं का टोटा क्यूं है सरकारी अधिकारी कर्मचारी अपने बच्चों को अदालत की कड़ी टिप्पणी बावजूद क्यूं नहीं इन्हीं विद्यालयों में पढ़ाई के लिए बाध्य कर रहें जिससे कम से कम अधिकतम वेतन पाने वालों की जवाबदेही तो बढ़ेगी?