दरिंदगी और हैवानियत की हदें पार, बेटियाँ हो रही हैं शिकार…

0
60
Advertisement

कैसे हो सुरक्षा… क्यों हैं सभी मौन… जिम्मेदार कौन…/

Advertisement

सभ्य-समाज के लिए छेड़छाड़ तथा बलात्कार कलंक हैं और नारी के लिये अभिशाप। बलात्कार का अर्थ है बल प्रयोग द्वारा किया गया कार्य, यानी जबर्दस्ती। जोर जबर्दस्ती जैसी दूषित मानसिकता बदलने के लिए कोई ठोस योजना न सरकारों के पास है न ही समाज के पास। फिर कैसे रुकेंगे बलात्कार कैसे रुकेंगी छेड़छाड़ की घटनाएं? पुरुषों की ललचाई “गिद्ध-प्रवृत्ति” पर रोक कैसे लगेगी..? इन्ही सब समस्याओं का हल तलाशने की पहल करते हुए “सन्दौली टाइम्स” ने आधी आबादी के लिए एक खुला मंच तैयार किया है, जहाँ महिलाएं/बालिकाएं अपनी अनुभूतियों, अपने विचारों, अपने सुझावों को बेबाकी से रख रही हैं, जो कि संभावित हल तलाशने की तथा सामूहिक समझदारी उत्पन्न करने की बेहतर कोशिश है। सन्दौली टाइम्स को महिलाओं/बालिकाओं से निरन्तर विचार/सुझाव प्राप्त हो रहे हैं जिनमें से कुछ बाइसवीं कड़ी में प्रस्तुत हैं-                         

बाराबंकी विकास खण्ड बंकी के प्राथमिक विद्यालय भनौली की शिक्षा मित्र नीता वर्मा लिखती हैं कि-         

बेटियों के साथ हो रहे ऐसे जघन्य अपराधों के लिए कठोर निर्णय लेने की अब जरूरत है। साथ-साथ अपने घरों की बेटियों को भी जागरूक करने के साथ-साथ सतर्क रहने की जरूरत है। अपराधी किस्म के लोगों में कानून का डर नहीं है। घटनाएं बढ़ रही हैं। आये दिन होने वाली घटनाओं से मन बहुत ही व्यथित होता है और महिला होने के नाते खुद के अन्दर एक अज्ञात डर भी बढ़ जाता है। ऐसी जघन्य घटनाओं में जो वाकई दोषी पायें जायें, उन्हें कठोर दण्ड दिया जाये ताकि समाज में कठोर संदेश फैले और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। महिला अपराध रोकने हेतु तीन स्तरों पर कोशिशें करनी होंगीं:-          एक- घटना होने के बाद सही तरीके से दण्ड देने की प्रक्रिया व लापरवाही रोकने के उपायों पर ध्यान देना होगा। ये शासन-प्रशासन के दायित्व हैं।          दो- घटनाएं होने न पाएं इसलिए किशोर, किशोरियों को सम्भावित सभी खतरों से सावधान बनाकर व उनमें जागरूकता लाकर, उन्हें सतर्क करना होगा। ये स्कूल कालेज और सामाजिक संगठनों के दायित्व हैं।         तीन-  घर परिवार के अन्दर, बच्चे-बच्चियों में बचपन से ही एक दूसरे के लिए बराबरी का व्यवहार सिखाया जाए, एक दूसरे के लिए सम्मान सिखाया जाए। ये माँ बाप के दायित्व हैं। 

वंश ग्रामोद्योग विकास समिति बाराबंकी अध्यक्षा व बाराबंकी के मुहल्ला आज़ाद नगर, निवासी पूजा जायसवाल  लिखती हैं कि-         

समाज में नारी अपराध की बाढ़ के कारण हर गली चौराहे पे लडकियों का निकला मुसकिल हो गया है। दरिन्दे वहसी कब किस बहन बेटी को अपनी हवस का शिकार बना लें, पता नहीं। घर से निकली बेटी, जब घर वापस आती है, तभी सकून मिलता है तबतक माँ बाप की साँसें हलक में अटकी रहती हैं। पता नहीं समाज और सरकार कब जागेगी और बच्चियों महिलाओं को बिना डर के आने जाने का वातावरण बन पाएगा। महिलाओं व बच्चियों की सुरक्षा पुलिस के हवाले है जबकि सम्पूर्ण समाज को सुरक्षा का दायित्व लेना चाहिए। पुलिस हर जगह उपस्थित नहीं रह सकती परन्तु समाज के लोग हर जगह उपस्थित रहते हैं। अपराधी प्रवृति के लोगों की संख्या कम है आम लोगों की तुलना में। जब हर एक जागेगा तो अपराध भागेगा।

बाराबंकी रामनगर बदोसराय स्थित प्रमोद कुमार कामर्स क्लासेज की बी.काँम द्वितीय वर्ष की छात्रा, कल्पना पाण्डेय लिखती हैं कि-         

महिलाओं के आत्मसम्मान की रक्षा करना समाज का दायित्व है। महिलाओं को पूजने से ज्यादा आवश्यकता है उसकी निजता के अधिकार का सम्मान करने की। जहाँ एक तरफ दुनियाँ आधुनिक युग की तरफ बढ़ रही है, टेक्नोलॉजी ने लोगों का जीवन आसान कर दिया है तो वहीं दूसरी तरफ महिलाओं का जीवन उतना ही कठिन हो गया है। पूरे देश में रोज महिलाओं के प्रति अपराध के  मामले सामने आ रहें हैं। लोग कितना भी पढ़ लिख जाएं लेकिन अगर मानसिक विकृति में बदलाव नहीं आएगा तो देश की स्थिति भी बद से बदतर होती चली जाएगी। महिलाओं को अत्याचार के खिलाफ जंग लडनी होगी। लडकियों पर जब भी छेड़छाड़ की घटना होती है इसके बाद वे डर के मारे अपने परिजनों को नहीं बताती क्योंकि ऐसा करने पर लड़कियों का स्कूल आना जाना बंद करा दिया जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए और हमेशा लडकियों का साथ देकर ऐसी घटना करने वालों को सजा दिलानी चाहिए। ताकि किसी भी व्यक्ति की फिर से ऐसा करने की हिम्मत न हो। इसके लिए समाज में भी जागरूकता की जरूरत है। महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए और सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। जो लोग नारी को केवल एक वस्तु समझते हैं वे नारी का सम्मान नही करते बल्कि नारी पर अत्याचार करना अपना कर्तव्य समझते हैं।ऐसे ही लोग नारी के साथ छेड़छाड़ करते हैं। ऐसी गन्दी और नीच मानसिकता रखने वालों के खिलाफ त्वरित और उचित एक्शन सरकार ले तो नारी पर अत्याचार कुछ कम हो सकते हैं। जिला व पुलिस प्रशासन को भी इसके लिए विशेष कदम उठाना होगा।                                  “एक औरत की इज्जत क्या होती है, यह बात इन्सान को तब पता चलती है, जब वह किसी बेटी का बाप बनता है” दूसरों की बेटी का दर्द तभी समझ आता है जब खुद की बेटी को दर्द महसूस होता है।”दरिंदों ने शहर को जंगल बना दिया कलियों को नोचकर फिर बंजर बना दिया।”परिवार के कुल को बढाती हैं बेटियाँ, फिर क्यों, पैरों तले कुचल दी जाती है बेटियाँ ?? 

Advertisement

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here